पाकिस्तान की आर्थिक हालत दिनों-दिन खस्ता होती जा रही है। सीईआईसी के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज का दायरा 2017 में जहां 96.7 बिलियन यूएस डॉलर था वह दिसंबर 2018 में बढ़कर 99.1 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंच चुका है। 2006 के बाद से यह इसकी उच्चतम स्थिति है। इस खस्ताहाल स्थिति को सही करने के लिए पाकिस्तान लगातार विदेशी मदद के लिए हर दर पर जाकर कोशिश कर रहा है। यही कोशिश उसको पहले चीन और सऊदी अरब भी लेकर गई थी ।नमंत्री इमरान खान की कर्ज मांगने की कोशिशें रंग जरूर लाई और चीन समेत सऊदी अरब और यूएई ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद दीलेकिन इस कर्ज से पाकिस्तान अपनी सरकारी तिजोरी कितनी और कब तक भरा रख तिजोरी कितनी और कब तक भरी रख सकेगा, यह एक बड़ा सवाल है। वो भी तब जबकि देश में मुद्रास्फिती की दर लगातार बढ़ रही है। खाने-पीने की चीजों में बेतहाशा तेजी हो रही है। उद्योग धंधे लगातार सिमट रहे हैं और बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यह सवाल बेहद वाजिब हो जाता है।वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान को कभी उसके करीबी रहे अमेरिका से भी कोई मीद नहीं दिखाई दे रही है। अमेरिका लगातार पाकिस्तान पर शिंकजा कड़ा कर रहा है। पहले आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली आर्थिक मदद को कम किया और फिर इसको बंद भी कर दियाइसके बाद वह अब पाकिसतानी नागरिकों को वीजा न देने पर भी विचार कर रहा है। यदि अमेरिका ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान के हितों के खिलाफ फैसला लिया तो इसके गंभीर परिणाम पाकिस्तान को भुगतने होंगे। यं भी पाकिस्तान का विदेशी मद्रा भंडार खाली होने की कगार पर पहुंच चुका है। यदि पाकिस्तान को दिवालिया कहा जाए पाकिस्तान को दिवालिया कहा जाए तो यह भी वर्तमान हालातों में गलत नहीं होगा। इसके अलावा एफएटीएफ की आगामी बैठक पर भी पाकिस्तान की नजर लगी हई है।आपको बता दें कि एफएटीएफ फिलहाल पाकिस्तान को काली सूची नहीं डाला है, लेकिन यदि पाकिस्तान आतंकवाद पर काबू पाने में नाकाम रहा और अपनी जमीन को आतंकियों की शरण स्थिली बनाए रखा तो यह संस्था पाकिस्तान को काली सूची में डाल देगी। इसके बाद पाकिस्तान में विदेशी निवेश के दरवाजे पूरी तरह से बंद हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान बाहर से वित्तीय मदद भी नहीं ले सकेगा।आंकडों के मताबिक दो माह पहले पाकिस्तान के पास महज आठ अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था।अगस्त 2018 से ही पाकिस्तान खद को डिफॉल्टर होने से बचाने की कोशिश लगा है। इसके लिए पाकिस्तान ने अंतरराष्टीय मुद्रा कोष का भी दरवाजा खटखटाया था, लेकिन वहां से उसको वे उसको कुछ हासिल नहीं हो सका। 1980 के दशक । दशक के बाद से पाकिस्तान आईएमएफ की शरण में 13 बार जा चुका है। जहां तक पाकिस्तान को कर्ज देने की बात है तो इसमें चीन और सऊदी अरब सबसे आगे हैं।आपको बता दें कि चीन से पिछले माह ही पाकिस्तान को 2.1 अरब डॉलर का कर्ज दिया गया है। इससे पहले पाकिस्तान को मदद के तौर पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से भी एक-एक अरब डॉलर मिल चुके हैं। पिछले दिनों जब सऊदी के क्राउन प्रिंस पाकिस्तान गए थे तब उन्होंने पाकिस्तान में पेट्रोकेमिकल्स, ऊर्जा और खनन परियोजनाओं में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। यहां आपको ये भी बता दें कि सऊदी अरब पहले भी कई बार पाकिस्तान की वित्तीय मदद कर चनुका है। वर्ष 2014 में पाकिस्तानी रुपया के धड़ाम होने पर भी सऊदी अरब ने इस्लामाबाद को डेढ अरब डॉलर की मदद दी थी चीन की जहां तक बात है तो उसने चाइनापाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर में 62 अरब डॉलर का निवेश किया है। वहीं अब अरब डॉलर का निवेश किया है। वहीं अब दोनों देशों के बीच कराची-पेशावर रेलवे लाइन के अपग्रेडेशन, द्वितीय चरण के मुक्त व्यापार समझौते और एक शुष्क बंदरगाह (ड्राई पोर्ट) के विकास के मसौदे पर समझौता हुआ है। दरअसल, पाकिस्तान के आर्थिक विकास के लिए कराची- पेशावर रेलवे ट्रैक का डबल ट्रैक में पारवतन जरूरा समझा जा रहा था, इसलिए पाकिस्तान ने इसके विकास पर दस्तखत किए हैं। इस परियोजना के तहत 1,680 किलोमीटर की लंबाई में नया रेलवे ट्रैक बनेगा। इसके लिए चान 8.4 अरब डालर (58 हजार करोड़ रुपये) की सहायता देगा। क पाकिस्तान की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 19 अरब डॉलर (1.32 लाख करोड़ रुपये) की मदद दे रहा है।आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि चीन का पाकिस्तान पर करीब दस बालयन अमारका डालर का कज अभी बकाया है।
- - - - - आर्थिक बदहाली का शिकार पाकिस्तान कर्ज से कितनी भर पाएगा अपनी सरकारी तिजोरी!